Hindi best shayari -: "यहां आपको मिलती है 'हिंदी बेस्ट शायरी' का एक बेहतरीन चयन, जो हर मूड और एहसास को खूबसूरती से व्यक्त करता है।”
-) क्या खूबसूरत होती होगी वो बातें जो उसके होंठों से निकलती होगी ,
बाग की कलियां महक उठती होगी जब वो उन्हें छूती होगी ।।
गुलाब की चिटकल भी शर्माती होगी जब वो उसे देखती होगी ,
जो आंख उसे देखती होगी वो फिर किसी और पे ना ठहरती होगी ।।
वो जब रेगिस्तान में जाती होगी तो वहां हरियाली फ़ैल जाती होगी ,
आंखे नीलकमल सी उसकी फिर उनको काजल से सजा लेती होगी ।।
चंचलता उसके मन की नदियों को ख़ूब भाती होगी ,
उसके चेहरे पर कैसे नज़र रोके वो दो पल में सब मोहिनी कर जाती होगी ।।
उसको देख के कोयल बागों में गीत सुनाने लग जाती होगी ,
मुझसे पूछते क्या हों रातों की नींद का ,
जो याद कर लूं उसे मैं फिर मुझे क्या नींद आती होगी ।।
-) देखा चांद को चांद ने तो चांद ने चांदनी की चमक तेज करदी ,
काली अंधियारी में दूधिया रंग की रौशनी भर दी ।।
जो खिल उठी चांदनी तो रजनीगंधा ने सुगंधित वर्षा करदी ,
जो खिले ना थे फूल दिन में कभी इस चांदनी ने उनको भी रात रानी करदी ।।
बड़ी खूबसूरत हैं ये चांदनी,
चकोर को गौर से देखा मैंने तो उसने खिलखिलाती चांदनी से अठखेलियां करदी ।।
ये सब देख रहा था चांद बड़े ध्यान से ,
समेट ली सारी चांदनी उसने फिरसे काली रात करदी।।
दो पल की ख़ुशी थी आशुतोष चांदनी रात की ,
दो पल की ख़ुशी ने मेरी उम्र बड़ी लंबी करदी ।।
-) लौट आएं जो हम अपने पुराने किरदार में,
तो ये नए दौर के लोग खुद को आजमाते फिरेंगे ,
नये दौर के लोग भूल जायेंगे शख्सियत मेरी कितनी अच्छी हैं।।
) पत्ते साख से टूट जाएं तो बिखरे से लगते हैं,
साख पे हो तो सबको अच्छे लगते हैं ।।
फुहारों के मौसम में भी वो बस पतझड़ से बेबस लगते हैं,
हरियाली की चमक देखते ही बनती हैं आंखों में ,
जो साथ न हो डाली का वो बस बंजर सी लगती हैं ।।
-) एक टूटते तारे से मांग आएं हैं तुझको ,
नसीब क्या हैं किसे ख़बर ।।
हम ये सोच के ख़ुश हैं कि,
दुआ में कबूल हैं हमें तू और इससे ज्यादा क्या मंजूर हैं हमें ।।
कल को किसने जाना हैं,
तेरे आज से संवरती हैं ज़िंदगी मेरी ।।
तू हक़ीक़त में रूबरू हैं मेरे ,
या ख़्वाबों में गुज़र रही ये रातें मेरी ।।
टूटते तारे से मांगा हैं तुझको ,
बस इसी बात से चल रहीं हैं आशिक़ी मेरी ।।
-) टिमटिमाते तारों में एक चेहरा नज़र आता हैं,
जो बारिशों से दोस्ती करूं तो उनमें भी तेरा चेहरा बन जाता हैं
हवाओं ने छेड़े सुर और सरगम बन जाते हैं,
जो देखना चाहा सरगम को कभी उसमें भी बस तू ही तू नज़र आता हैं
बैठा था बाग में मैं, कलियों की महक थी सुगंधित सी जो आंखों से देखा तो कलियों में भी तेरा चेहरा नज़र आने लग जाता हैं
ख़ुद से दोस्ती अच्छी नहीं लगती हमको ,
जब जब ज़िक्र तेरा हो ये बंजर ज़मीन वसंत सी बन जाती हैं
-) ज़माने को ये हक़ तो नहीं हमें ग़ैर ज़िम्मेदार ठहराएं,
कुछ तो बाते अनकही रही होगी ।।
सुनने वालों ने उनके हक़ की बातें सुनी ,
मेरे हिस्से में जो था वो मेरी बुराइयों के सिवा कुछ ना था ।।
किसे मंजूर हैं लुट जाना भरे बाज़ार,
मुझे जान ने वालों से पूछों क्या शख्शियत हैं आशुतोष की ।।
-) जब जब ज़िक्र होगा तेरी काली जुल्फ़ों का ,
तब तब बारिशे बरसेंगी।।
तू जो रख दें क़दम बगिया में,
कलियों में महक आ जाएगी ।।
जो तू मुस्कुरादे वसंत में ,
कोयलिया मधुर गीत सुनाएगी ।।
जो तालों को आंख भर के देख ले तू ,
तो ये भी तलैया बन जाएगी ।।
तू जो एक निग़ाह करदे हमपर ,
तू ही तू ताउम्र हम में बस जाएगी ।।
-) ये वक़्त यूं भी हैं कुछ पास सब हैं,
लेकिन तेरी कमी हैं बस,
जानते सब भी खूब हैं मुझको,
लेकिन तेरे जान ने में मेरी बात कुछ और ही हैं ।।
ना चाहिए जमाने भर की ख़ुशी हमको आशुतोष,
झलक एक तेरी मिल जाएं,
फिर क्यों ही खज़ाने चाहिए हमको,
दीदार की मुराद पूरी हो जाये दुआ बस यहीं हैं ।।
-) तेरे चेहरे ने ना जाने क्या जादू किया हैं,
जब भी नज़र गई ना जाने ये दुःखों की घड़ी कहां गईं ।।
हम ख़ुद में टूट गए थे जाने एक ज़माने में ,
मिलाई नज़रें तुम से फिर ये तन्हाई ना जाने कहां गईं ।।
अब ये ज़माने की बातें हमें ख़ैर मंज़ूर नहीं,
तुझे पाया हैं एक मुद्दत से हमने,
हमारे ख़्वाब की अब जन्नत सी हो गईं।।
-) एक तो कड़ाके की ठंड ऊपर से ये हवाएं सर्द,
बर्फ़ ज़माने का इस मौसम को बस ये घमंड ।।
फ़िर भी हम एक आस में बैठें हैं,
मिलेंगे हम मिलोगे तुम ,
चलेगी फ़िज़ाये तेज होगी जब ये ठंड ,
गरमा गर्म होगी प्याली,
ये अदरक वाली चाय ,
फिर किसे याद हैं ,
ये सर्द हवाएं और ये तेज ठंड ।।
-) उम्मीद वफ़ा जाने क्या क्या टूटा,
एक पल में मेरे जैसा दीवाना टूटा ।।
ख़ुद को समेट रखा था एक अरसे से ,
वादे वफ़ा से तेरा यार टूटा ।।
जनता हूं ज़माने की हवा ,
भ्रम में था आशुतोष जब दिल टूटा तो लगा आसमान टूटा ।।
कहते थे यार पुराने सब क्या ख़ूब बोलती थी आंखे तेरी,
जिस दिन गिरी बूंद ज़मीन पे एक अक्स बनके ,
आवाज माटी से भी आने लगी कि लगे ऐसे जैसे मेरा लाल टूटा ।।
-) फूल बागों में माली ने तोड़े तो ये मुरझाने लगे,
जो ज़िक्र कर दिया चांद से तेरे चेहरे का तो ये खिल खिलाने लगे ।।
ये डाली से टूट के मुस्कुराने लगे ,
हम ख़ुद को भुला कर तेरे ख्वाबों को सजाने लगे
।।
-) माना कि खूबसूरत हैं ज़िंदगी ,
मगर हम जान के दुश्मनों से ऐसी बात ना किया करो ।।
इस हाल में आ बैठे हैं हम ,
ना जाने किस जंजाल में आ बैठे हम ।।
-) इस दौर में आ बैठे हैं हम के कुछ कर जाएं ,
कर जाएं कुछ या गुज़र हीं जाएं ।।
ख़ुदकी ख़बर हमें भी नहीं अब ,
या कुछ ख़बर ही हम बन जाएं ।।
ये आफ़तों के दौर ये बदलते मौशमों के शोर ,
लगता हैं अब सब से ही जुदा हो जाएं ।।
एक अरसे से इंतज़ार में थे हम जिस मंज़िल की ,
लगता हैं अब अपने मुक़ाम पर हो जाएं ।।
किसी नज़र को भाता मैं भी ख़ूब था ,
अब दिल करता हैं कि सबकी नज़रों से ही उतर जाएं ।।
मलाल हैं हमें तमाम तेरे ना आने का ,
तू ही बता क्या हम इस आशियाने से ही उड़ जाएं या ख़ुदा के घर जाएं ।।
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-) अब तो फिज़ाओं के साएं से भीं डरने लगें हैं,
अब जो इश्क़ हम करनें लगें हैं ।।
-) ख़ैर कहां हमको ज़मीन नसीब हैं,
हम आसमान की चाहत में ,
ज़मीन आसमान दोनों के ना हो सकें ।।
-) उस से पूछों मेरी यादों की सीढ़ी वो कैसे चढ़ती होगी ,
कैसे उसकी शाम गुजरती होगी,
वो रास्तें को तकती होगी,
अश्रुओं की माला को ख़ूब संजोती होगी ।।
-) वो चांद से मुकाबला कर लें ,
तो चांद शर्माने लगें ,
वो जो मुस्कुराएं तो ,
ग़ुलाब मुरझाने लगें ।।
वो वसंत के आगमन का ,
कारण बनने लगें,
वो चाहें तो रेगिस्तान में,
हरियाली बिखेरने लगें ।।
-) हम बिन मौसम बरसने वालें बादल,
सबकुछ अच्छें को ख़त्म करनें वालें बादल,
हम अपनी कहानी ऐसे ही रंजिशो में ख़त्म करने वालें बादल ।।
-) रूठने की वो अदाएं सीख आएं जाने कहां से,
अब हर पल रूठे रहते हैं वे ।।
-) बदलते मौसम का रुख ले लेना ही समझदारी हैं,
अपने हक़ में होने के बावजूद अपने ख़िलाफ़ हैं सब ।।
-) बरसती बादलों की बूंदों से कुछ पूछ आएं हम ,
ये हमसे खफा हैं अब जहां भीं में जाता हूं साएं की तरह मेरे पीछे हैं ।।
-) तू बदनाम ना कर मुझ जैसें को ,
मैं अदब से पेश आने वाला,
सबको एक समान मान लेने वाला ,
मुझे मेरे हाल पे रहनें दें यूं बदहाल ना कर ।।
-) मैं क़िस्मत के भरोशें बैठ भीं नहीं सकता,
मैं अपनी मेहनत के बलबूतें सब कुछ कर जाना चाहता हूं ।।
-) तू ये भीं ना सोच की मैं तेरे बिना कुछ नहीं,
मैं ख़ुद की हद पे आ जाऊं तो जाने कितनों के मौसम बिगड़ जाएं ।।
-) मैं बदहाल गलियों को जाने कैसे संभालूं,
मैं इनको संभालने का प्रयास करता हूं ,
और ये बिखर जाती हैं ।।
-) आसमान नूर कब तक बरसाएगा ,
कभीं तो कहर की रातों को जानो ,
कैसे रातें अपने रँग को बदलती हैं ।।
-) किसी रोज़ तुम जान जाओगें,
हम तुमको हर बला से बचा कर रखना चाहते थें बस ।।
-) तुम ना जानो हम क्या हो गएं हैं,
हरी भरी भूमि में बंजर से हो गएं हैं,
पहले खुशहाल थें अब बदहाल हो गएं हैं ।।
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-) हमसे ना पूछों क्या हो गएं हैं,
हम अपनी कहानी से दूसरी राह पर खो गएं हैं ।।
-) मैं अपने तेवर पर आने लग जाऊं,
तो ना जाने कितने के मिज़ाज बिगड़ने लग जाऊं,
ये जो इतराते हैं किसी और के नाम पर,
इन सब के नाम बिगड़ने लग जाऊं ।।
-) मैं ख़ुद को इस हाल घसीट लाया हूं,
जैसे मछलियों को पानी से खींच लाया हो ।।
-) क्या क्या हुआ हमारे साथ ,
किसको सुनाएं अपनी आप बीतीं,
अश्रुओं के सिवा अपना कुछ ना हुआ ।।
-) वे अपने हाल को बदलनें लगें,
हम अपनी कस्ती को समन्दर में मोड़ने लगें,
अंज़ाम क्या हुआ हम किनारे लग गएं,
वे बदहाल से खुशहाल होने लगें ।।
-) समंदर का मिज़ाज जान लो,
ये आगोश में आ गया तो जाने कितने जानदारों को ले डूबेगा ।।
-) गुज़रें दौर को कैसे याद करूं,
उसमें लाख रंजिशो के सिवा कुछ नहीं ।।
-) वे दिल में रह गया ,
उसे भूलना आसान नहीं,
एक ज़माने से मेरे अंतर मन में रह गया ।।
-) किसी और के लिएं हमें नज़रंदाज़ ना कर,
हम औरों की बातों से परेह हैं,
औरों की समझाइश से अलग हूं ।।
-) यहां वहां की बातों को नज़रंदाज़ कर,
औरों की कस्ती दरिया के तूफ़ान में डूबी हैं,
और हम समंदर के तूफ़ान से बच निकलें ।।
"अगर आप दिल से जुड़ी हुई और दिल को छूने वाली भावनाओं की तलाश में हैं, तो हमारी 'हिंदी बेस्ट शायरी' आपके दिल को एक खास अहसास देगी।”
~~~आशुतोष दांगी~~~
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