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-) उसने कहां था रुकना एक मिनट,
कईं उम्रें गुज़ार दी उसके एक मिनट में ।।
हम यूं ठहर गए मानो बर्फ़ में ज़म गएं,
बस ऐसे रुक गएं जैसे ज़माने गुज़र गएं उसके एक मिनट में ।।
-) आबों हवां शहर की बदलने लगी ,
इससे पहले कुछ ज्यादती हो जाएं ।।
हम इस शहर से जुदा हो जाएं ,
क़यामतें बरसने के आसार लगते हैं,
इससे बेहतर तो ये हैं अब सबसे अलग हो जाएं ।।
-) घर से बेघर होनें का डर सताने लगा ,
अपनी मर्जी से जो में चलने लगा ।।
जी हुजूरी में जाने कितना वक्त गुजरा ,
अब इस घर को पराया कहने को जी करने लगा ।।
-) डर ये हैं मेरे बाद मेरे जैसा कोई नहीं ,
जो मैं भी बदल गया तो फ़िर इस सादगी का हक़दार कोई नहीं ।।
-) मुकाम हर एक को मिले ज़रूरी नहीं,
मेहनत से ही सब हासिल हो ये ज़रूरी नहीं ।।
कुछ तो तमाशा किस्मत का भी हैं,
मुक़ाम रहमत बग़ैर ख़ुदा के हासिल नहीं ।।
-) उसके एक इशारे पर हमनें,
हर उस बात से किनारा किया ।।
जो हमें सबसे ज्यादा मंज़ूर थी ,
उसकी बातों को हमने वफ़ा का नाम दिया ,
जिसकी वो हकदार थी ।।
उसके कहें से बाहर भी जा नहीं सकते ,
उसने जो कहा वो सब पत्थर की लकीर थी ।।
-) हम ख़ुद के खिलाफ जा सकते हैं ,
तुझसे हम अलग नहीं जा सकते ।।
तेरी हर बात को एक किताब में लिख आएं हैं हम,
लिखी हुईं बातों से भाग नहीं सकते हम ।।
वादा तुझसे सारी उम्र का किया हैं,
जबतक पूरी नहीं हो जाती जहां छोड़ नहीं सकते हम ।।
-) बात ना हो तुझसे तो जाने क्या होने लगता हैं,
सूरज डूबा सा मन उलझने लगता हैं।।
तू सिर्फ़ इश्क़ नहीं ,
ज़िंदगी हैं हमारी ।।
-) फिज़ा रंग सतरंगी होने लगी ,
तेरा नूर जबसे छाने लगा ।।
आसमान भी रंग बदलने लगा ,
हमसे जब नज़र आप मिलाने लगें ।।
-) सरेआम बर्बाद करने लगें,
अपने मुझको परेशान करने लगें ।।
कोई भी नहीं हासिल हमें ,
हमसे सब दूर जाने लगें ।।
-) वक्त बर्बाद कर रहें हैं हम ,
अपनी तबाही का तमाशा कर रहें हैं हम ।।
और तो कुछ नहीं पास हमारें,
वे वक्त मरने लगें हैं हम ।।
-) ज़माने की नज़र से बच रहें हैं,
अपनी नज़र से उतर रहें हैं ।।
और किसी से क्या कहें हम ,
अब ख़ुद से बच रहें हैं हम ।।
-) तू उम्मीद का दामन यूं ना थमा ,
हर बात पे आस टूटी हैं ।।
दिल के टुकड़े भरे बाज़ार हुएं हैं,
हम सरेआम बर्बाद हुएं हैं ।।
-) डर से यूं भी ना कतराये ,
डर को हासिल कर एक किरण पे बैठ जाएं ।।
कुछ तो हासिल होगा तुम्हें,
डर से क़दम न डगमगायें ।।
-) आब़ों हवा बदल रही हैं,
शहर में बरसाते मेरे बहाल की बरस रहीं हैं ।।

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-) हम ख़ुद से हीं नहीं सुलझ पाएं ,
औरों को क्या दोष दें कि उन्होंने उलझा दिया ।।
-) हम मेहनत के भरोसे रहें,
मंज़िल कोई किस्मत वाला लूट ले गया ।।
-) किसी के हो जाने में ऐतराज़ नहीं हैं,
बात ये हैं वो हमें उनके अनुसार चलने को ना कहें ।।
-) ये भरोसा भी होने लगें,
की वे सिर्फ़ हमारा हैं,
तू उसके नाम ज़िंदगी लिखने में क्या हर्ज़ हैं ।।
-) हम भूल जाना चाहते हैं सबकुछ मग़र,
हर शाम तेरी यादों का पिटारा खुल जाता हैं ।।
-) हम बुरें दौर के साथी हैं,
हमनें किसी की अच्छाई से ज्यादा मजबूरी देख रखी हैं ।।
-) इसमें क्या बुरा हैं कि वो बस बुरा हैं,
धोखेबाज नहीं वो सिर्फ़ बुरा हैं ।।
-) सावन के झूलों की याद हैं,
वरना तो उस मौसम को याद रखने जैसा कुछ नहीं ।।
-) हम अपनी परछाई देख घबरा गएं,
क्या थें हम और क्या हो गएं,
ऐसा कुछ तो होना नहीं चाहिए था ,
हम बिछड़ी रूत में मिलें थें,
अब बैराग्य में तबाह हो गएं ।।
-) किसी ने उम्मीद भी ना की थीं कि हम ऐसा कुछ कर जाएंगे ,
हम ख़ुद को भूलकर सबकुछ भूल जाएंगे ।।
-) इस बात का गुरूर रहेगा ताउम्र,
हमारी चाहत ज़माने से अलग रहीं ,
किसी को उम्मीद ना थीं ऐसी कुछ ,
वो सब बातों से परेह रहीं ।।
-) हम उम्मीद का दामन थाम लें,
तेरे नाम का मुसीबतों का दौर हैं कहीं तेरे नाम से टल हीं जाएं ।।
-) प्यार में वादा ख़िलाफी हमें मंज़ूर नहीं,
अगर ऐसा कुछ हो तो वो प्यार नहीं ।।
-) हम उसके साथी रहें जिसका साथ सिर्फ़ बुरे वक़्त ने दिया ,
उसके अलावा उसे सब लोगों ने नकार दिया ,
अब हमनें उसका हाथ थामा तो एक उम्र तक रहेंगे,
बुरा वक़्त हैं आख़िर कब तक रहेगा ।।
-) किसी और के पहलू में आ बैठें वो ,
हमारे हर पहलू में जिसे होना चाहिए था ।।
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-) वक़्त यूं चल रहा हैं आंधियों में जैसे बर्बादी चल रहीं हो ।
-) उम्र को दोष ना दिया जाएं ,
हालातों ने रहम की सोची नहीं ,
वरना तो बचपन मेरा भीं ,
गांव की गलियों में रंग रलीयों सा गुजरता ।।
-) किसको अपना कहें अपनेपन की,
क़ीमत भीं अदा नहीं कर सकता मैं ।।
-) हम भूलें भटकों को पनाह में एक आशियाना दो,
कबतक उम्र गुजरेगी भटकतें भटकतें ।।
-) हमें किसी और की रहमतों के भरोसे छोड़ा ना जाएं,
किसी और का भरोसा नहीं अब तुम हीं दुआ करो मेरे नाम की ।।
-) आपदाओं का दौर जाने हमपर कैसे आ गया ,
हम सोचतें थें कि हम इस अवसर के हक़दार नहीं ।।
-) हम चाहें तो क्या नहीं कर सकतें हैं,
एक मुश्किल को आसान कर लें ,
जो हमारा भी उसे अपना कर लें ।।
-) वो सोचता कितना कुछ हैं,
क्यों किसी दूर शहर का मुसाफ़िर उसे अपना बना लें ,
मैं इस बात के भरोसे में हूं मेरे होते हुएं ,
कोई उसे मेरी नज़र से देख भी नहीं सकता ।।
-) दिलों की बात ना की जाएं तो बहुत अच्छा हैं,
अरमानों के टूटने की आवाज ना सुनी जाएं तो अच्छा हैं,
कितना कुछ हुआ हैं हमारे साथ ,
उसे काग़ज़ पे ना ही उकेरा जाएं तो अच्छा हैं ,
क्यों किसी काग़ज़ को रुलाना चाहतें हो तुम ,
बस भ्रम में हीं रखा जाएं तो अच्छा हैं ।।
-) वो सोचती बहुत हैं बिन बात की बातों को ,
अगर ये ना किया तो क्या होगा ,
कोई और मुझे ले गया तो जाने क्या होगा,
मैं ख़ुद को मिटा दूंगी,
मेरी ज़िंदगी की आख़िरी वो रात होगी ,
सब कुछ ही तो फ़िर ख़त्म होगा,
मैं उसे समझाता हूं मेरे होते हुएं अगर ये होगा,
तो जाने कितनी ज़िंदगियों का सौदा होगा ,
तेरा कुछ नहीं होगा ये आशुतोष ,
फ़िर शिव का रौद्र रूप होगा ।।
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~~~आशुतोष दांगी~~~
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