best shayari in Hindi-:"हमारी वेबसाइट पर आपको हर मूड और एहसास को बयां करने वाली best shayari in Hindi का ऐसा संग्रह मिलेगा, जो न केवल दिल को छू जाता है बल्कि पढ़ने वाले के मन में गहराई तक उतर जाता है।"
-) मेरे दिल का हाल पूछना कोई खता तो नहीं,
और चाहा तूने भी मुझे हैं,
जिसका ख़ुद कुछ पता नहीं हैं।।
-) हमारे दिल से ना खेल इसमें जज़्बात नहीं ,
यूं महफ़िल में हमारा नाम ना ले ,
हमारे शब्दों में अब मिठास नहीं ।।
-) हम तो ना आते इन गुमनाम गलियों ,
तेरे होने की आहट हमें खींच ही लाईं,
इन बदनाम गलियों में ।।
-) जहां दिल को रोका वहां निगाहों ने बगावत कि ठानी,
और जहां निगाहों ने रोका वहां फिर दिल ने ठहरना बगावत समझा ।।
-) बस अब दिल ठहरना चाहता हैं,
बहुत भटक लिया अब तेरा होना चाहता हैं,
आशियाना चाहता हैं,
एक डाल का पंछी होना चाहता हैं,
ये अपना घर चाहता हैं।।
-) मेरे मशहूर होने से भी इल्म है जमाने को ,
हर किसी को मेरा कामयाब होना अखरता हैं,
रातों का सफ़र कैसा काटा मैंने,
उन्हें बस दोपहर का सूरज दिखता हैं।।
-) हर एक चांद को चांदनी नसीब नहीं ,
सच के देवताओं को इंसाफ नहीं ,
बागियों को बगावत नहीं ,
पंडितों को भगवान नहीं ,
ईमानदारों को ईमान नहीं ।।
-) हम आशिक़ मिज़ाज कहां दिल लगाने से डरते हैं,
हो जाएं खता फ़िर उसके अंजाम को सिर रखते हैं,
हम परवाने बस मिटने को आतुर रहते हैं,
आग की चाहत में लपटों से मिलते हैं ।।
-) हो मंज़ूर ख़ुदा को अगर तो दिल लगा ले हम ,
सारे फ़ैसले हो हमारे ही हक़ में तो कचहरी में ये मुद्दा भी उठा ले हम ,
हमें मंज़ूर नहीं अपने सिर पर इल्ज़ामात ,
इल्जामों से परे अपनी छवि बना ले हम ।।
-) तुमसे दिल लगाना ना जाने कितनी आफ़तों कि पुड़िया हैं ,
ये गुनाह हैं और मैं अब गुनहगार हूं ,
ऐसा फैसला मेरे हक़ में कर दिया हैं।।
-) आ भी जा के अब ज़िंदगी बागडोर कम लगे हैं,
पास तू ना हो तो सांसे कम लगे हैं,
कोई वादा मिलन का कर ,
बगैर वादें के सब झूठ सा लगे हैं।।
-) बिछड़ने वाले ये भी सोच की मिलने में कितनी ज़ुस्तज़ु थी ,
आफत थी बदनामिया थी मुसीबतों कि मारी किस्मत थी ,
जुदा होने में एक पल लगता हैं,
मिलने में सारी उम्र सी लगती हैं, ।।
खैर इसमें दोष किसी का भी ना तेरा ना मेरा ,
जमाने कि नज़र थी और बुरी नजर लगती हैं ।।
-) कुछ वादा ऐसा भी था ,
मेरे ना आने का था ,
दौर मुसीबतों का था ,
अच्छे बुरे का था ,
मेरे बिछड़ने का था।।
-) आंखे आज भी तेरा वो मुड़कर देखना ना भूली
सबकुछ भूली हैं तेरा वो हंसना ना भूली ।।
मुझे याद करता है जमाना ,
में तेरी वो यादें नहीं भूली ,
तू मुस्कुरा देता था मैं वो हँसी नहीं भूली ।।
-) तू ये भी वफ़ा का पैगाम ला ,
आशिक़ो का नाम ला,
किसने उड़ाई ये अफ़वाह मेरे बर्बाद होने की,
दिलो के महफ़िल से बेघर होने की ,
तू ये अहसान कर नाम कर,
वो जो है नहीं कुछ भी वो पैगाम ला ।।

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-) हाल बुरा हैं शहर का तेरे आशुतोष,
घूसखोरों की सरकार चल रहीं हैं ।।
और मुजरिम भीं हम हैं,
क्योंकि ईमानदारी की राह पर जो हम खड़े हैं ।।
-) माना कि हम गुस्से में बहुत कुछ बोल जातें हैं,
मग़र दिल इन सब बातों से ज़ुदा रहता हैं।।
जो हुआ उसपे हमारा ज़ोर नहीं था ,
-) वो शाम भीं अब कहाँ नज़र आती हैं अपनी सी ,
वो पास नहीं तो कुछ अपना भीं नहीं हैं ।।
-) हम अपनी सी करनें लगें ,
सब हमसे अलग होने लगें ।।
ये भीं लाज़मी हैं और ये कैसे हो सकता हैं,
हम अपनी सी करें और बाक़ी साथ दें ।।
-) ज़िंदगी भर की बात नहीं ,
एक पल का साथ दे जातें तुम ,
हम सबसे ये कह देते ,
वक़्त ने हिदायत ना दी वरना वो तो हमारा हीं हैं।।
-) वो बिखरी जुल्फ़े जाने कैसे संवरती होगी,
मेरे बाद वो कैसे महफूज़ होती होगी ,
मेरा दिल सब चिंताओं में घिरा रहता हैं,
वो बचपने में जीने वाली कैसे समझदार रहती होगी ।।
-) इश्क़ की फिजाएं अब इस शहर आ चली हैं,
जाने लैला मजनू की औलादें इस शहर आ चली हैं।।
हम भीं कोषों दूर हैं इस मंज़िल से अभी ,
बाक़ी कौनसी मंजिलें लोगों ने पकड़ रखी हैं,
अभी ये मुमकिन नहीं कि दिल लगाया जाएं,
काम और भीं करनें को फ़िर ये काम क्यों किया जाएं ।।
-) तेरे शहर का हाल क्यों ख़राब होनें लगा आशुतोष,
मैंने अभी तो क़दम भीं नहीं रखा और बातें मेरे ख़िलाफ़ होने लगीं ।।
-) रहमतों का दौर कबतलक़ चलता रहेगा ,
हम किस की छत्रछाया में रहेंगे ।।
कभीं तो हमें भीं अस्त्र उठाने होंगे ,
अपने हक़ की लड़ाई कभीं तो लड़नी होगीं ।।
-) कबतक हम सांस रोकें रहेंगे ,
कबतक जान छूटेंगी नहीं ।।
तुम देर ना करना इतनी भीं ,
जिस्म से रूह फ़ना होने लगेंगी।।
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-) हम ख़ुदा की रहमतों के मारें हैं,
इंसानों के बस की बात नहीं थीं ।।
हम जो थें बहुत ख़ूब थें,
वक़्त के हाथों हाथ कांटे गएं हमारे ।।
-) तू जानता नहीं तेरे बग़ैर एक पल दिल नहीं लगता हैं,
तू जो इस शहर में नहीं तो ये शहर वीरान सा लगता हैं ।।
-) कभीं किसी रोज़ हमको ,
हम जैसा समझना तुम ।।
औरों ने जो समझा उससे ,
हटकें समझना ।।
-) अब तो ये भीं समझ से परेह हैं,
की हम औरों को समझने में ख़ुद को समझना भूल गएं ।।
-) हमारे नुक्स को ना जाँच कर ,
हम हर बात से आज़ाद हैं,
ख़ुदको एक उम्र से सजाया हैं हमनें,
इस क़दर बनाने में एक अरसा बिताया हैं ।।
-) मेरे मेहबूब से मेरी बातें ना करना ,
मेरे जाने के बाद वो बेहाल सा हो जाएगा ।।
उसकी सलामती की दुआ करना ,
मेरे बाद उसका मेरे जैसा ख़्याल रखने वाला कोई नहीं ।।
-) मुझको हिदायत ना दो ज़माने की ,
ज़माने के हर रँग को देख आया हूं मैं ।।
-) दौर ख़त्म सा हो रहा हैं मेरे जैसे बादशाह का ,
अब तो जाने क्या क्या हो रहा हैं,
बादशाहत ख़त्म हो रहीं हैं,
सल्तनत का सिकंदर अब राह से भटक गया ।।
-) किन नज़रों ने हमको छुपा लिया ,
ज़माने की नज़र से हमको बचा लिया ।।
बचना मुमकिन नहीं था ,
फ़िर भीं इतनी उल्फतों से हमको बचा लिया ।।
-) ज़ोर ज़माने का चलने लगा ,
मैं अपना होश गंवाने लगा ।।
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~~आशुतोष दांगी
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